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Friday, March 30, 2012

दोस्ती ऐसी....

वो आए मेरी ज़िन्दगी में,
मिलकर हँसी मज़ाक के संग।
ढेर सारी शुभकामनाएँ मेरे लिए लाया।
पढाई में हो या हो फिर बात किसी ओर की,
कभी यह कभी वो कर, हर पल साथ निभाया।
कहने को तो दोस्त था पर दोस्त से बढकर पाया।
सुख दुख एक कर, कुछ लम्हें बीते ऐसे,
खुद रोए पर भी पलके गीली मेरी न चाहे।
न जाने ऐसा क्या था...
मेरे दुखों का कागार ढोकर भी खुशियों की झलक झिलमिल उसमें पायी।
कहता तो सिर्फ यही ʻबस अच्छा लगता है तुम्हारा साथʼ
शायद इसीलिए देता था साये की तरह हरपल मेरा साथ।।

दिन, माह, साल, लम्हा-लम्हा बह गया।
मौसम ने भी ली जाने कितनी ढेरों अंगडाई।
फिर भी पायी न कभी तेरी दोस्ती में खाई।
तेरी दोस्ती की गाँठ ऐसी बँधी,
न जाने वक्त की लहर सरक गई ऐसे,
दिन, महीना ओझल हो गई जैसे।।

कहता था बनूँ मेरे लिए सबसे खास....
बना वो कब मेरे लिए एक उपहार, वो न जाने,
सोने सी दोस्ती को हीरों से झढा दी,
रिशतों की अहमीयत को ओर भी बढा दी।
डूब गया वो दोस्ती में शायद इस कदर,
साहिल को वो पीछे छोड, निकल गया कोसों दूर....
हम हुए इस मंज़र के सैलानी अब,
सच यही,भाग्य की लेख को मिटा सके न कोई..

फिर भी...
न है कोई शिकवा तुमसे और न ही कोई गिला
दिया न कुछ और न शायद कुछ दे सकूँ,
सिलसिला तेरी अच्छाईयों का भूला सकूँ न कभी
याद रहोगे तुम और तुम्हारी प्यारी दोस्ती सदा ।

चाहूँ तहे दिल से हर पल भला तेरा,
खिले तु किसी भी बाग में चाहे,
हवा का रुख हरदम तेरी ओर लहराए,
फूलों की महक आए,
खुशियों की सावन बरसे।
गम के बादल कभी न छाये,
आँसु की एक बूँद न पाये।
खाली न जाए दुआ इस दोस्त की,
बस चाहूँ यही, सुख, समृद्धि हो हरपल तेरी परछाई।।

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